तेजेश चौहान ,तेजस
गाजियाबाद
इस भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा वाली दुनिया में बड़ी संख्या में लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। आखिर डिप्रेशन क्या है ? लोग डिप्रेशन के शिकार क्यों हो जाते हैं और यदि लोग डिप्रेशन में आ जाएं तो उससे किस तरह से निकल सकते हैं ? इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए गाजियाबाद जिला एमएमजी के मनोरोग चिकित्सक डॉ ए के विश्वकर्मा ने इस पूरे मामले में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि खासतौर से दिल्ली एनसीआर में एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा और आगे बढ़ने की होड़ के कारण लोग अधिक संख्या में डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं।उन्होंने बताया कि ओपीडी में जितने भी मरीज आते हैं। उनमें से करीब 40 से 50 मरीज डिप्रेशन के शिकार पाए जाते हैं और उन्हें उपचार के साथ साथ उनकी काउंसलिंग कर उन्हें डिप्रेशन से बाहर निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि डिप्रेशन को हल्के में भी ना लिया जाए। क्योंकि यदि कोई भी डिप्रेशन का शिकार हो गया तो वह डिप्रेशन आत्महत्या या किसी की हत्या करने को भी मजबूर कर सकता है।
डॉ ए के विश्वकर्मा (मनोरोग चिकित्सक)
मनोरोग चिकित्सक डॉ विश्वकर्मा का कहना है कि जब किसी भी इंसान का स्वभाव अचानक ही बदलना शुरू हो जाए वह एकांत पसंद करने लगे और किसी भी काम करने के लिए मन ना करें हमेशा तनाव में रहे तो समझ लीजिए वह शख्स डिप्रेशन में चला गया इंसान को इन सब बातों का खुद भी अपने आप ही पता भी चल जाता है यदि समय रहते ही वह अपने पहले वाले स्वभाव में ही आ जाए तो निश्चित तौर पर डिप्रेशन से निकला जा सकता है।
उन्होंने बताया कि डिप्रेशन का शिकार इंसान किसी भी उम्र में हो सकता है यदि बड़े लोग डिप्रेशन के शिकार होते हैं तो उसकी सबसे बड़ी वजह यह होती है कि वह जो सोचते हैं।पूरा नहीं हो पाता और इस प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ वाले जीवन में वह अपने आप को अधूरा महसूस करते हैं तो इसलिए डिप्रेशन की तरफ जाने लगते हैं और यदि बच्चे डिप्रेशन के शिकार होते हैं, तो उसमें सबसे बड़ी वजह यह होती है कि बच्चे उन बुलंदियों को छूना चाहते हैं और ऐसे सपने देखने लगते हैं। जहां पर वह अपने जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को आसानी से उपलब्ध कर सकें। लेकिन बच्चे धरातल से ज्यादा वह उम्मीदें बनाये बैठे रहते हैं और उन बुलंदियों तक नहीं पहुंच पाते या फिर पढ़ने वाले बच्चे प्रेम प्रसंग में पड़ जाते हैं। जिसके बाद उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो जाती है और सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं तो ऐसे बच्चे भी डिप्रेशन की तरफ जाने लगते हैं। उन्होंने बताया कि जब बच्चे डिप्रेशन की तरफ जाते हैं तो इसकी भी जानकारी बच्चों के घरवालों को आसानी से हो जाती है। क्योंकि उनकी दिनचर्या और स्वभाव में अंतर आने लगता है।
उन्होंने बताया कि उनकी ओपीडी में जितने भी मरीज पहुंचते हैं। उनमें से करीब 40 से 50 मरीज ऐसे होते हैं जो डिप्रेशन के शिकार होते हैं और उन्हें उपचार के साथ-साथ उनकी काउंसलिंग कर उन्हें डिप्रेशन से बाहर निकाला जाता है। मनोरोग चिकित्सक का कहना है कि जब बच्चे डिप्रेशन में आ जाएं, तो उन पर अपनी बात नहीं तो अपनी चाहिए और उनके पहले स्वभाव में लाने के लिए उनके साथ मित्रता रखते हुए उन्हें डिप्रेशन से बाहर करें। उनका कहना है कि जब बच्चे बड़े होने लगे तो उनके साथ मित्रता वाला व्यवहार रखना चाहिए।
डॉक्टर विश्वकर्मा का कहना है कि डिप्रेशन को हल्के में भी ना लिया जाए यदि डिप्रेशन को हल्के में ले लिया जाता है। तो निश्चित तौर पर यह डिप्रेशन जीवन के अंत तक पहुंचा देता है।