ईद पर‌ सजी बारादरी में अदब की महफ़िल 

ईद पर‌ सजी बारादरी में अदब की महफ़िल 

गाजियाबाद

ईद पर‌ सजी बारादरी में अदब की महफ़िल 
"आधे सोये,आधे जागे पास में तेरे बैठे हैं, जैसे हमने शाम से पहले नींद की गोली खा ली हो : पवन कुमार
राशिद, बैरवा और सारस्वत ने बनाया ईद को और खुशगवार

गाजियाबाद। 'खार भी गुलज़ार करने का काम करते हैं, यह तो बारादरी है जो अदब को महफूज़ रखने का काम करती है। महफ़िल ए बारादरी के बारे में जैसा सुना था वैसा ही पाया।" मशहूर शायर व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पवन कुमार ने बारादरी के कार्यक्रम में उक्त विचार प्रकट किए।

बतौर कार्यक्रम अध्यक्ष उन्होंने कहा कि इस महफ़िल का 'मिक्स ब्लैंड' बड़ा ही रोमांटिक है। जिसका जाएका देर तक महफूज रहता है। अपने अशआर पर भरपूर दाद बटोरते हुए उन्होंने कहा "किसी ने रक्खा है बाज़ार में सजा के मुझे, कोई ख़रीद ले क़ीमत मिरी चुका के मुझे। उसी की याद के बर्तन बनाए जाता हूं, वही जो छोड़ गया चाक पर घुमा के मुझे।" बारादरी के मिक्स ब्लैंड को परिभाषित करते हुए अपनी मशहूर ग़ज़ल के इन शेरों "इक इक चुस्की चाय की फिर तो होश उड़ाने वाली हो, तूने जिस पर होंठ रखे थे काश वही ये प्याली हो। आधे सोये,आधे जागे पास में तेरे बैठे हैं, जैसे हमने शाम से पहले नींद की गोली खा ली हो। ढूंढ रहा हूं शह्र में ऐसा होटल जिसके मेन्यू में, बेसन की चुपड़ी रोटी हो दाल भी छिलके वाली हो" पर भी खूब दाद बटोरी। श्रोताओं के बीच भरपूर सराहे गए पवन कुमार ने आगे कहा "कड़ी है धूप तो सूरज से क्या गिला कीजे, यहां तो चांद भी पेश आया तमतमा के मुझे। उसे भी वक़्त कभी आईना दिखाएगा, वो आज ख़ुश है बहुत आईना दिखा के मुझे।" आइने की बाबत उन्होंने यह भी फरमाया "इस हकीकत का बताओ सामना कैसे करूं, आईना भी सामने है और बेचेहरा हूं मैं।"


  नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में सजी महफिल के मुख्य अतिथि असलम राशिद ने फ़रमाया "हम समझे थे चांद सितारे बनते हैं, पर अश्कों से सिर्फ शरारे बनते हैं। दिन दिन भर आईना देखा जाता है, तब जाकर दो चार इशारे बनते हैं। जब उसकी तस्वीर बनाई जाती है, साया साया धूप बनाई जाती है। पहले उसकी आंखें सोची जाती हैं, फिर आंखों में रात गुजारी जाती है।"

संस्था की संस्थापिका डॉ. माला‌ कपूर 'गौहर' का सावन  गीत "सावन की इस पावन रुत में, मन मल्हार ही गाए, तुम छेड़ो ऐसी रागिनी, तन तानपुरा हो जाए..." और ग़ज़ल के शेर "नींद का ऐसा सिलसिला रखना, ख़्वाब में ख़्वाब का पता रखना। तंज़ कर लेना शौक़ से लेकिन, सामने पहले आईना रखना। जब भी ‘गौहर’ ग़ज़ल सुनाना तो, गूंगे लफ़्ज़ों को बोलता रखना" पर दाद बटोरी।

सावनी रुत की बात को आगे बढ़ाते हुए विशिष्ट अतिथि राम अवतार बैरवा ने कुछ यूं कहा "हवाओं का राग देखना, घटाओं का आलाप देखना, रिमझिम रिमझिम थिरक पड़ेगी, बारिश अपने आप देखना।" 

  संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने अपना अंदाज यूं बयां किया "क्यूं नज़र फेर के बैठे हो, ख़फ़ा हो, क्या हो, हमसे क्यूं बात नहीं करते, खुदा हो, क्या हो। धूप में रहके लुटाते हो मुहब्बत अपनी, तुम हो बादल कोई या पेड़ घना हो, क्या हो। रौशनी बांट रहे हो ये बताओ तो ज़रा, क्यूं अंधेरे में रखा ख़ुद को, दिया हो, क्या हो।" नेहा वैद का गीत "हमने तो घर बुलाया आपको, आप तो मकान देखने लगे" भी सराहा गया।

मुम्बई से आए डॉ. वागीश सारस्वत ने महफिल में रूमानी रंग भरते हुए कहा ''शर्त ये है कि तुम मुस्कुराती रहो, मैं लिखूं गीत तुम गुनगुनाती रहो। आंख को आंसुओं की जरूरत नहीं, मोतियों सा तुम इन्हें सजाती रहो। बात ही बात में बात बन जाएगी, तुम परी बन कर ख्वाबों में आती रहो।" डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया की गजल के शेर
"सूरज पूरब से निकलेगा, इतना कहकर, मैंने पश्चिम वालों को नाराज कर दिया। सिर्फ कबूतर के जीने की दुआ मांग कर, देखो मैंने अपना दुश्मन बाज कर दिया", प्रतिभा प्रीत की ग़ज़ल "ज़ुल्मते शब के तरफ़दार हुए जाते हैं, लोग अब ज़हन से बीमार हुए जाते हैं।आपको पुल की तरह पार लगाना था हमें, आप ही राह की दीवार हुए जाते हैं",योगेन्द्र दत्त शर्मा के शेर "जश्न जीत का मना रही है, अब अय्यारी क्या कहिए।

दो कौड़ी की हुई आजकल, हर खुद्दारी क्या कहिए", जगदीश पंकज‌ के नवगीत, प्रतीक्षा सक्सेना दत्त की कविता 'कील', पुष्पा जोशी की कविता "टपका" के अलावा सुरेंद्र सिंघल, मासूम गाजियाबादी,

सुभाष चंदर, डॉ. तारा गुप्ता, विपिन जैन, पूनम सिंह, अनिल शर्मा, नित्यानंद तुषार, देवेन्द्र देव, दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, विनय कुमार विनय, शैलजा सक्सेना, सुरेंद्र शर्मा, गार्गी कौशिक, तुलिका सेठ, जय प्रकाश रावत, देवेंद्र कुमार देव, ट्विंकल शर्मा, प्रतिभा प्रीत, इंद्रजीत सुकुमार, देवेंद्र देव, यश शर्मा, सीमा शर्मा आदि की रचनाओं ने भी ध्यान खींचा।

  कार्यक्रम का संचालन तरुणा मिश्रा ने किया। अपनी गजल में उन्होंने फरमाया "एक इम्कान है जो दिल में छुपा रक्खा है, आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खा है। दर्द आए कि ख़ुशी आए, कज़ा या के हयात, हमने सब के लिए दरवाज़ा खुला रक्खा है। मेरे दुख दर्द समझती हैं मेरी ग़ज़लें भी, मैंने अशआर में हर राज़ छुपा रक्खा है। उसकी यादों के सहारे ही गुज़रती है शाम, आज भी चाय पे उनको ही बुला रक्खा है।" श्रोताओं, कवियों और शायरों से भरपूर सभागार में सुरेंद्र सिंघल, मासूम गाजियाबादी, सुभाष चंदर, डॉ. तारा गुप्ता, विपिन जैन, पूनम सिंह, अनिल शर्मा, नित्यानंद तुषार, विनय कुमार विनय, शैलजा सक्सेना, सुरेंद्र शर्मा, गार्गी कौशिक, दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, तुलिका सेठ, जय प्रकाश रावत, देवेंद्र कुमार देव, ट्विंकल शर्मा, इंद्रजीत सुकुमार, देवेंद्र देव, यश शर्मा, सीमा शर्मा आदि की रचनाएं भी सराही गईं।


इस अवसर पर आलोक यात्री, दुर्गेश्वरी सिंह, आभा बंसल,तेजवीर सिंह, वागीश शर्मा, डॉ. नवीन चंद लोहनी, अक्षयवरनाथनाथ श्रीवास्तव, तिलक राज अरोड़ा, कविता अरोड़ा, रवीन्द्रकांत त्यागी, आशीष मित्तल, राकेश सेठ, स्वामी अशोक चैतन्य, सुशील कुमार शर्मा, एन. पी. सिंह, कुलदीप, डॉ. आर. वी. एस भदौरिया, शशिकांत भारद्वाज, ए. के. शर्मा, अमित कुमार, पंकज प्रधान, देवेंद्र गर्ग, मधुकर मोनू त्यागी, अमित बेनाम एवं संजय चौधरी सहित बड़ी‌ संख्या में श्रोता मौजूद थे।