तेजस न्यूज :-महफ़िल ए बारादरी में बही गीत, शेर दोहा की रसधार

तेजस न्यूज :-महफ़िल ए बारादरी में बही गीत, शेर दोहा की रसधार

एक ही कथा है किंतु अलग-अलग मानी, तेरे सुख की मेरे दुख की एक है कहानी : डॉ. प्रभा ठाकुर 

पढ़ते कैसे तुम मुझे कैसे मुश्किल थे हालात, तुमको आदत लफ्ज़ की मैं खाली जज्बात : आदेश त्यागी 

महफ़िल ए बारादरी में बही गीत, शेर दोहा की रसधार

तेजस न्यूज संवादाता
   


  ग़ाज़ियाबाद। सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं राज्यसभा की पूर्व सदस्य डॉ. प्रभा ठाकुर ने कहा कि कविता इंसानियत को जिंदा रखने का काम करती है। महफ़िल ए बारादरी की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने अपने गीत की पंक्तियों "एक आंख है हसीं तो एक आंख पानी, तेरी मेरी जिंदगी की एक है कहानी, जो धरा की है तपन वही गगन का पानी, इस जमीं आसमां की एक है कहानी, एक आग दीप में है एक चिता की अगन, एक आग ज्योति है तो एक आग है जलन, एक ही कथा है किंतु अलग-अलग मानी, तेरे सुख की मेरे दुख की एक है कहानी..." के जरिए पूरे सदन की सराहना बटोरी। उन्होंने कहा कि कविता के जरिए बहुत सी चीजों को संवारा जा सकता है। जिसमें समाज, विचार और इंसान सभी शामिल हैं।


अपनी कविता 'दिशाहीन होने दो' के माध्यम से उन्होंने समाज को नई दिशा देने की कोशिश की।


  नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित महफ़िल ए बारादरी में बतौर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध शायर व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आदेश त्यागी ने "क्या है जिसने मेरे दिल में इतनी हिम्मत भर दी है, मुझ में है कानून की ताकत तन पर खाकी वर्दी है।

तुम्हें बचाने अपराधी के पीछे भाग रहा हूं मैं, तुम सो जाओ नींद चैन की क्योंकि जाग रहा हूं मैं" से भरपूर दाद बटोरी। उनकी पंक्ति "पढ़ते कैसे तुम मुझे कैसे मुश्किल थे हालात, तुमको आदत लफ्ज़ की मैं खाली जज्बात" भी खूब सराही गई। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा "इसलिए रहता नहीं कोई नया डर मुझ में, आईना जागता रहता है बराबर मुझमें।" "मेरी नजरों ने बरसात में छू लिया उसका गीला बदन, उससे नजरें मिली और फिर शर्मसारी रही उम्र भर।" बारादरी की संस्थापिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने फ़रमाया "तुम बसे थे मेरे फसानों में, किसकी आहट है फिर ये कानों में। हर जबां में हो एक जैसे ही, पढ़ लिया तुमको सब जबानों में।" 


  कार्यक्रम की शुरूआत डॉ. तारा गुप्ता की सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम का संचालन भी उन्होंने ही किया। प्रतिभा प्रीत ने फ़रमाया "हम तो समझे थे कि ख़ुशियां कर रहे हैं हम जमा, फोड़ी पर जब दिल की गुल्लक दर्द की राहत  मिली।" मनीषा जोशी ने कहा "चुरा कर आंख सबसे जिस तरह तुम देखते हो, मिरे महबूब होने का इशारा जा रहा है।" वागीश शर्मा ने कहा "गीत वादों के हम गुनगुनाते रहे, जख्म दिल के यूं ही छुपाते रहे।"

इसके अलावा सुभाष चंदर, राजेश श्रीवास्तव, कृष्ण कुमार 'नाज़', आलोक यात्री, मनु लक्ष्मी मिश्रा, डॉ. अमर पंकज, राजीव सिंघल, प्रेम किशोर शर्मा, सुरेंद्र शर्मा, अनिल शर्मा, देवेंद्र देव, जे. पी. रावत, सौरभ कुमार और सिमरन की रचनाएं भी सराही गई। इस अवसर पर आभा बंसल, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, कुलदीप, भूपेंद्र राघव, अजय कश्यप, आशीष मित्तल, प्रभा मित्तल, मोदिता काला, पं. सत्य नारायण शर्मा, रंजन शर्मा, रवि शंकर पाण्डेय, हेमंत कुमार, संजय भदौरिया, वीरेंद्र सिंह राठौर, दीपा गर्ग, पी. के. शर्मा, पी. एस. पंवार, तिलक राज अरोड़ा व अंजलि समेत बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।